लगा के रोग इश्क का रुख मोड़ने लगी है जब दीवानगी हद पार कर गई अब साथ छोड़ने लगी है
टूट गए सारे सपने जब टूट गई सब आस मेरी हुए जुदा हम अपनों से भर आई तब आंख मेरी
ए बेवफा जो मैंने दिया है वापस वह अपनी अमानत चाहते हैं जो भोली भाली सूरत मीठी मीठी बातों में आकर अपनी रूह को गिरवी रख दिया है उसकी जमानत चाहता हूं
हकीकत सामने आएगी पर्दा जरा सा हटाने दो जो है उनके बहुत करीबी उन्हें टूटकर बटनें दो
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